सुधा मिश्र ।
वैशाख सकराइतके परात मिथिला – मधेसमे जुडशितल मनायल जाति छै। नव वर्ष तथा सतुवानि पावनि मनेलाक उपरान्त दोसरदिन मिथिला – मधेसमे पावनि जुडशितल मनबाक परम्परा रहियाल छै। अहिदिन घरक बुजुर्ग बासि पानि सँ घरपरिवार अा समाजक अपना सँ छोट व्यक्तिके एक चुरुक पानि सँ माथा थपथपाक जुडायल रहु कहिक अाशीर्वाद दैत छै। इ देलगेल अाशीर्वाद सँ लोक सालभरि जुडायल रहछै से विश्वास रहियाल छै। जुडशितलके बासि पावनि सेहो कहल जाति छै।अहि पावनिमे बासि खायके परम्परा रहियाल छै।सतुवानि दिन रातिमे रान्हल वरी भात जुडशितल दिन खायल जाति छै।
जुडशितल दिन मिथिला – मधेसमे खास परिकार खायके चलन रहियाल छै।अहिदिन विशेष रुप सँ बसिया भात,वरी,सोहिजनके तरकारी ,तरुवा अा दही खायल जाति छै।इ खास परिकारोमे खास मानल गेल छै कुच्चा जे अामक टिकुला सँ बनाउल जाति छै।स्वादमे विशिष्ट कुच्चा सभके प्रियगर लगैत छै।जुडशितल दिन सब किछु बासि खायके परम्परा रहिअायल छै।जुडशितलके दिन भोरमे चुल्ही नहि पजारल जाति छै। घरक सब मुह पर प्रसाद रुपमे वरी भात चढायल जाति छै।श्रेष्ठबुढ लोग भोरे भोरे अपन हितप्रेमके अांगनमे जाक जुडाबके चलन रहियाल छै।
जुडशितल पावनि एकटा रमनगर उत्सवके रुपमे सेहो मनायल जाति छै।अहिदिन लोक एकदोसरके थालमाटि लगाक मनोरंजन करैछै।होरी रंग बरसाक खेलल जाति छै त जुडशितल थालपानि सँग खेलल जाति छै।अहि दिन ननैद- भौजाइ बीच थाल माटिलय रंगरभस कायल जाति छै।तहिना सार बहिनोईमे सेहो थालमाटि लय खुब धमगज्जर कायल जाति छै।धर्ती मायके दुलार पूरा देहमे लेप इ पावनि समुहमे सेहो खेलायल जाति छै।बहुत मोनमोहित होइत छै इ दृश्य ।धर्ती माँके अाभुषण लय सब अपनाके अनमोल ढंग सँ सजेने रहैछै।अहिपावनि दिन माटिमे निपायल सबके देख लग‌ैत छै जेना सभ मनुष्य सचमे धर्ती माँके सन्तान छै।मिथिला – मधेसमे जुडशितल दिन घर आँगनके निपल पोतल जाइ छै।सबटा गाछ वृक्षमे पानि पटायल जाति छै।मालजालके सेहो जुडशितल दिन नहायल जाति छै। घरमे पंक्षी पालल गेल छै त ओकरो नहायल जाति छै।पानि लक जुडायल जाति छै।ध्यान राखल जाति छै जे जुडशितल दिन सबके अात्मा तृप्त होइ।हर प्राणी,घर ,आंगन अा दलान जुडायल रहै।सबठाम चारुदिस गुमारक समयमे शितल शान्तिके बाँस होइ।आशा करीजे जुडशितल दिन दुष्ट ,पापी,राक्षस कोरोना सँ संसारके छुटकारा मिलै।थाल माटिमे लेसराक धर्तीमे सदासदाके लेल बिलिन भजायजाहिस जुडशितल दिन इ सृष्टि जुडायल रहै।सभ श्रेष्ठ नीडर नीफिकिर भय घुमि घुमिक पूरागाम भरि अपन शाखा सन्तानके जुडाबलाय बाहर निकैलसके।

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